Bhagwat Geeta Pdf: श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का संदेश सुनाया था। महाभारत भीष्म पर्व के अंतर्गत दिया गया एक उपनिषद है। श्रीमद्भागवत गीता में भक्ति योग, कर्म योग, एकेश्वरवाद, ज्ञान योग का अति सुंदर वर्णन किया गया है।
महाभारत को श्रीमद्भागवत गीता का पृष्ठभूमि माना जाता है। जिस प्रकार एक जन सामान्य मानव अपने जीवन की समस्याओं में उलझ कर कर्तव्य विमुख हो जाता है और अपने जीवन की समस्याओं से लड़ने की बजाए उससे भागने लगता हैं। उसी प्रकार महाभारत के महानायक अर्जुन, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे।
Bhagwat Geeta Pdf
अर्जुन की तरह हम भी कभी-कभी अपने जीवन की समस्याओं से भयभीत होकर विचलित हो जाते हैं और समस्याओं से लड़ने की बजाय उनसे बचने की कोशिश करने लगते हैं। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने जनसामान्य के हित के लिए महा ज्ञान को श्रीमद् भागवतगीता के रूप में प्रस्तुत किया है।
यहां पर हमने भागवत गीता महाकाव्य का सार व अर्थ को सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया है।
(अध्याय – 1) अर्जुन -विषाद योग :-
इस अध्याय में श्रीकृष्ण जी ने 47 श्लोकों द्वारा अर्जुन की मन स्थिति का वर्णन किया है, कि किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से बचना चाहते हैं, क्योंकी वे अपनों से युद्ध नही करना चाहते, वह चाहते हैं कि किसी तरह से उनकी आपस में संधि हो जाए ,लेकिन कृष्ण उन्हें समझाते हुए कहते हैं, कि यह कर्म भूमि है, मानव का असली घर तो परम धाम है,यह संसार तो मनुष्य लिए क्षण भर का खेल है, उसके सब अपने यहीं छूट जाने है,लेकिन जो धर्म के अनुसार कर्म करता है, वही कर्म उस मानव के साथ जाता है। किंतु श्रीकृष्ण कहते है कि क्षत्रिय धर्म युद्ध है। अपनों के लिए शोक मनाना छुप कर बैठा नहीं।
(अध्याय -2) सांख्य-योग :-
अध्याय-2 में कुल 72 श्लोक हैं। जिसमें अर्जुन श्रीकृष्ण से अपने मन के भावों को व्यक्त करते हुए कहते है, कि मै उन पर अपने बाण कैसे चला सकता हूं,जो मेरे सगे सम्बन्धी और पूज्यनीय है, अंत में लोग क्या कहेंगे कि राज-पाठ की लालच में आकर मैंने अपनो से युद्ध कर उन्हें अघात पहुचाया। फिर श्रीकृष्ण,अर्जुन को, बुद्धि योग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, सांख्ययोग और आत्म का ज्ञान देते हुए कहते है कि आखिर आत्मा को कौन मार सकता है,फिर यह शरीर तो नश्वर है,और यहाँ के मानव क्षण भर के साथी है। इसीलिए तुम्हारा युद्ध करना ही आवश्यक है, वास्तव में इस अध्याय में पूरी गीता का सारांश बताया गया है और इस अध्याय को भगवत गीता का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग माना जाता है, जो भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा दायक है।
(अध्याय -3) कर्मयोग :-
अध्याय-3 में कुल 43 श्लोक हैं। इस अध्याय को कर्मयोग माना जाता है। जहाँ अर्जुन को कर्म करने के लिए कहा जाता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को निर्देश देते हुए कहते हैं,कि रणभूमी में परिणाम की चिंता तो सिर्फ़ कायर करते है,योद्धा कभी भी फल की इच्छा नहीं करते,तुम तो एक माध्यम हो,करने वाला तो ईश्वर ही है। इसीलिए हमें सिर्फ अपना कर्म करते रहना चाहिए।
(अध्याय -4) ज्ञान कर्म संन्यास योग :-
अध्याय-4 कुल 42 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते है कि संसार में ज्ञान की ही पराकाष्ठा है और ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है और उससे भी अधिक गुरु की पराकाष्ठा है जो हमें प्रकाशमय करता है। अर्जुन को इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्मपारायण के संरक्षण और अधर्मी के विनाश के लिए गुरु का अत्यधिक महत्व है।अर्थात गुरू द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना शिष्य का परम कर्तव्य होता है इसीलिए तुम रणभूमि में युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ।
(अध्याय -5) आत्मसंयम योग :-
अध्याय-5 में कुल 47 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अष्टांग योग के बारे में बताते हुए अर्जून से कहते हैं कि किस प्रकार मन की दुविधाओं को दूर किया जा सकता है। किस प्रकार मन को एकाग्र किया जा सकता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि अन्तःकरण की शुद्धि से ही मन के द्वंद्व दूर होते है, इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम अपनी मन को स्थिरता देने के लिए योग की सरण में जाओ, जहाँ पर तुम्हारे हर सवाल का जवाब है।
(अध्याय -6) ज्ञानविज्ञान योग :-
अध्याय-6 में कुल 30 श्लोक हैं। जिसमे यह कहा गया है कि संसार शाश्वत नहीं है। संसार में कुछ भी अमर नहीँ है। एक न एक दिन सब कुछ नष्ट हो जाना है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निरपेक्ष वास्तविकता और उसके भ्रामक ऊर्जामाय के बारे में बताते हुए कहते हैं,कि तुम्हें किस चीज की चिंता है, इस संसार में कोई किसी का नहीँ है।
(अध्याय -7) अक्षरब्रह्मयोग :-
अध्याय-7 में कुल 28 श्लोक हैं। जिसमें यह कहा गया है कि अक्षर ही ब्रह्म है और उसी की शक्ति से ही सब कुछ गतिमान है,इसलिए तू उस परमात्मा का चिंतन कर, इस पाठ में नरक और स्वर्ग का सिद्धांत भी शामिल है। इसमें मृत्यु से पहले व्यक्ति को स्वर्ग और नरक जाने वाली राह के बारे में बताया गया है।
(अध्याय -8) राजविद्याराजगुह्य योग :-
अध्याय- 8 में कुल 34 श्लोक हैं। इसमें श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि तुम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानों और इसमें यह भी बताया गया है कि श्रीकृष्ण की आंतरिक ऊर्जा ही सृष्टि को व्याप्त बनाती है। उसका निर्माण करती है और पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर सकती है।
(अध्याय -9) विभूति योग :-
अध्याय-9 में कुल 42 श्लोक हैं। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि मै ही इस सम्पूर्ण जगत माया को अंशमात्र से धारण किय हुऐ हूँ। इसलिए मुझे ही तत्वों के रूप में जानना चाहिए। श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हुए कहते है कि किस प्रकार सभी तत्वों और आध्यात्मिक अस्तित्व के अंत का कारण बनते हैं। जो कि उस परमात्मा द्वारा चिंन्हित किया गया है।
(अध्याय -10) विश्वस्वरूपदर्शन योग :-
अध्याय-10 में कुल 55 श्लोक हैं। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मुझमें ही समस्त संसार निहित है और अर्जुन के कहने पर ही श्री कृष्ण जी अपना विश्वरूप धारण करते हैं और श्री कृष्ण के इस रूप को देख कर महाभारत के नायक अर्जुन आश्चर्यचकित हो उठते है।
श्रीमद्भागवत गीता के पढ़ने के लाभ व फायदे | Shrimad Bhagwat Geeta Book in Hindi PDF
जो व्यक्ति श्रीमद् भागवत गीता का अध्ययन करते हैं वह धीरे-धीरे मोह माया, लालच, क्रोध और कामवासना जैसी विचलित करने वाली बंधनों से मुक्त हो जाते हैं इस प्रकार के बंधन उनके जीवन में कभी रुकावट नहीं बनते। हमारे सनातन धर्म में भागवत गीता का बहुत विशेष स्थान है क्योंकि हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है। भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण जी के कमल मुख से निकला हुआ अमृत समान शब्द है जो उन्होंने कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के दौरान अपने सखा अर्जुन को दिया था।
भागवत गीता का नियमित रूप से अध्ययन और इसके श्लोकों का अध्ययन करने से मानव के जीवन में अविश्वसनीय परिवर्तन आते हैं। मानव को कर्म का रास्ता और दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्रीमद् भागवत गीता का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ताकि मनुष्य मोह माया, छल और लालच के बंधनों से मुक्त हो सके। यही कारण है कि आज वर्तमान में वैज्ञानिक युग में भी देश के सभी न्यायालयों में गीता पर हाथ रखकर कसम खिलाई जाती है। तो चलिए जानते हैं कि भगवत गीता के पढ़ने के क्या लाभ हैं।
> > मन नियंत्रण में होता है।
जो व्यक्ति लगातार श्रीमद् भागवत गीता का अध्ययन करता है वह पूर्ण रूप से अपने मन पर नियंत्रण पा लेता है और मन पर नियंत्रण होने से वह जैसे चाहे वैसे अपने मन को कार्य में सकता है।
> > मन शांत रहता है।
जो व्यक्ति भागवत गीता का नियमित रूप से अनुसरण करते हैं, उनका मन सदैव शांत रहता है। वह विपरीत व कठिन परिस्थिति में भी अपने मन को शांत रखते हैं और अपने वचनों पर नियंत्रण रखते हैं।
> > आत्मविश्वास बढ़ता है।
श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है उसके आत्मबल में बढ़ोतरी होती है और मानव आत्मनिर्भर बनकर अपने कर्तव्य व लक्ष्य की पूर्ति हेतु कार्य करता है।
> > लोभ, क्रोध, माया और काम दूर होता है।
भागवत गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति समय के साथ धीरे-धीरे क्रोध, लालच, मोह-माया, और कामवासना जैसी विचलित करने वाली बंधनों से मुक्त हो जाता है। ऐसे बंधन फिर कभी उसके जीवन या उसके लक्ष्य में बांधा नहीं बन पाते हैं।
> > सच और झूठ के ज्ञान की प्राप्ति।
गीता का अध्ययन करने से व्यक्ति को सच और झूठ, जीव और ईश्वर का ज्ञान होता है और उसके अंदर सच और झूठ को समझने के गुण का विकास होता है।
FAQ:
Q: गीता की 18 बातें कौन सी है?
गीता के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण यह उपदेश देते हैं कि जो मनुष्य यह अट्ठारह बातों को अपने जीवन में उतारता है वह दुखों, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, मोह, माया, लालच, चिंता, भय इत्यादि जैसे बंधनों से मुक्ति पा सकता है।
Q: भगवत गीता को कैसे पढ़ते हैं?
प्रतिदिन श्रीमद भगवत गीता एक निश्चित समय और स्थान पर पड़े जिस पाठ को पढ़ना शुरू करें उसे खत्म करके ही उठे गीता पढ़ने के बाद प्रत्येक श्लोक को सही से समझे और उसे अपने जीवन में उतारे।
Q: भगवद गीता क्यों पढ़ना चाहिए?
श्रीमद् भगवत गीता सर्वशक्तिमान है यह मनुष्य के सभी संदेहों को दूर करके एक स्पष्ट उत्तर प्रदान करती है मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए भगवत गीता एक सर्वोच्च पुस्तक है।
Q: संपूर्ण गीता का सार क्या है?
श्रीमद भगवत गीता में श्री कृष्ण जी अर्जुन से कहते हैं हे पार्थ इस सृष्टि में जन्म और मृत्यु ही यथार्थ सत्य है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित ही है और मृत्यु ही एक मात्र सत्य है।