Friday Night Plan Movie Review: हिंदी सिनेमा में अपने दमदार अभिनय से अपनी खास छाप छोड़ने वाले दिवंगत अभिनेता इरफान खान के बेटे बाबिल खान की दूसरी फिल्म “फ्राईडे नाइट प्लान” है। अभिनेता के तौर पर उनकी पहली फिल्म “कला” है।
पहली बार जब उन्हें कैमरे के सामने अपना हुनर और अदाकारी दिखाने का मौका मिला तो दर्शकों को उन्होंने अपेक्षाओं के अनुरूप की रिजल्ट दिया और वह दर्शकों की कसौटी पर खरे उतरे।
Friday Night Plan Movie Review
इरफान खान का नाम जुड़े होने से लोगों को उनसे काफी सहानुभूति थी। इसका फायदा यह भी हुआ की फिल्म जैसी भी हो उन्हें OTT पर व्यूज तो मिल ही जाते थे। गुणवत्ता के हिसाब से फिल्म फ्राईडे नाइट प्लान बहुत औसत सी फिल्म है।
अच्छा विचार, कमजोर विस्तार
फिल्म फ्राईडे नाइट प्लान अपने विचार के हिसाब से एक कमल की फिल्म हो सकती थी। बाबिल ने फिल्म यही सोचकर की होगी। यह फिल्म दो भाइयों के रिश्ते पर आधारित फिल्म है।
यहां पर एक ही स्कूल में पढ़ने वाले दो भाइयों की यह कहानी गजब विस्तार पा सकती थी और ऐसा करण जौहर कर सकते थे। जैसा कि उन्होंने अपनी कई फिल्मों में किया है।
अपनी फिल्म की कहानी खुद ही लिखने वाले निर्देशक वत्सल नीलकंठ शायद दो विभाग संभाल नहीं पाए। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है जिसके चलते जो फिल्म उत्साह उल्लास और किशोर ऊर्जा की हाई स्कूल ड्रामा फिल्म बन सकती थी। उससे यह चूक हो गई।
नहीं बन पाई तो भाइयों की स्नेह कथा
वत्सल नीलकंठ की फिल्म फ्राईडे नाइट प्लान अपने नाम से उत्सुकता जागती है। हमेशा एक दूसरे की टांग खींचते रहने वाले दो भाइयों में एक अभी भी 18 साल का हुआ है।
स्कूल खत्म करके किसी कॉलेज में एडमिशन लेने का उस पर दबाव और तनाव दोनों है। छोटा भाई थोड़ा मस्तीखोर है फुटबॉल मैच में गोल करके बड़ा भाई स्कूल का हीरो बन जाता है और उसी रात होने वाले फ्राइडे पार्टी में उसे न्यौताभी मिल जाता है।
मां कारोबारी सिलसिले में शहर से बाहर है तो दोनों भाई उसकी कार लेकर पार्टी में चले जाते हैं। मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों को रईस घरानो के बच्चों के साथ मेलजोल करने में जो दिक्कत आती हैं।
वह इस फिल्म की अंतर कथा हो सकती थी। फिल्म की पटकथा इतनी तेज भागती है कि उसका कोई भी भाव स्थाई तौर पर दर्शकों के दिमाग पर असर नहीं छोड़ पता है।
बाबिल के सामने इरफ़ान की चुनौती
फिल्मी फ्राईडे नाइट प्लान को कलाकार कमाल के मिले हैं। बाबिल खान फिल्म दिन पर दिन अपनी अदाकारी को और मजबूत कर रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म का भी गुणसूत्र अच्छा था और यहां भी उनका किरदार कुछ वैसा ही अभिनय में वह अपने पिता इरफान को बार-बार याद दिलाते हैं।
जब भी दृश्य भीतर ही भीतर घुटते इंसान का सामाजिक दस्तूर के साथ चलने की कोशिश का होता है और कैमरा उनकी आंखों के करीब जाने की कोशिश करता है तो वही इरफान की छाप उनमें दिखती है।
आध्या और मेघा के अभिनय का दिखा असर
वत्सल नीलकंठ ने एक काम फिल्म में अच्छा किया है और वह स्कूली छात्रों के रूप में बढ़िया कलाकारों का चयन। बाबिल के छोटे भाई का किरदार कर रहे अमृत का काम गौर करने लायक है।
कच्ची उम्र में जिस तरह की मस्ती वाला अंदाज कैमरे के सामने उन्होंने दिया है। वह उन्हें आने वाले दिनों में मदद कर सकता है।
आध्या आनंद का काम प्रभावित करने वाला है। और मेघा राणा पर भी फिल्म देखते समय निगाहें आ सकती हैं। फिल्म की कमजोरी यह भी है। की कहानी के रूमानी पहलुओं के बीच इसकी पटकथा इनको पनपने का मौका नहीं दे पाती है।
एक्सेल एंटरटेनमेंट की कमजोरी फिल्म
एक्सेल इंटरटेनमेंट के नाम से रिलीज हुई फिल्म फ्राईडे नाइट प्लान तकनीकी तौर पर कोई खास कमाल नहीं दिखती है।
फुटबॉल मैच वाले दृश्य में भी दिख जाता है की फिल्म के सिनेमैटोग्राफर कृष मखीजा के पास अपना हुनर दिखाने की कोई अलग सोच नहीं है।
फिल्म का संपादन और संगीत भी बहुत सामान्य है। 109 मिनट की यह फिल्म अपने समय के हिसाब से दर्शकों के निवेश पर कोई खास मनोरंजन रिटर्न देने में नाकाम है।