Subhash Chandra Bose Jayanti 2023

Subhash Chandra Bose Jayanti 2023: नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी के महान योद्धा रहे हैं जिन्होंने भारत देश की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी ने अंग्रेजों के सामने बहुत परेशानियां और चुनौतियां खड़ी कर दी थी। नेताजी ने विदेशों से सहायता प्राप्त करके भारत की आजादी के लिए सेना एकत्रित कर ली थी।

भारत देश की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस के कार्यों को याद रखने के लिए हर साल सुभाष चंद्र बोस जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पराक्रम दिवस के माध्यम से श्रद्धांजलि दी जाती है।

Subhash Chandra Bose Jayanti 2023

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था जो कि अब उड़ीसा की राजधानी है। इनके पिता जानकी नाथ पाठक शहर के प्रसिद्ध वकील और माता प्रभावती ग्रहणी थी। बचपन से ही सुभाष चंद्र बोस पढ़ाई में बहुत तेज थे। वह हमेशा ही पुस्तकों में खोए रहते और उन्हें कंठस्थ करते रहते।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक एवं उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते थे। नेताजी बचपन से ही देश प्रेम उनके अंदर भरा था। नेताजी बचपन से ही भारत को आजाद कराने का सपना देखते थे।

Subhash Chandra Bose Jayanti 2023

नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड गए। उस समय प्रशासनिक सेवा में सिर्फ ब्रिटिश नागरिक ही चुने जाते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस परीक्षा को पास किया । साथ में मेरिट में उनका स्थान चौथा था। 

नेताजी के अंदर बचपन से ही देश प्रेम उछाल मार रहा था। इसलिए नेताजी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नेताजी कांग्रेस से जुड़ गए और आजादी की लड़ाई में कूद गए। हालांकि कांग्रेस में  कई लोगों से उनके मतभेद रहते जिसके कारण वर्ष 1939 में कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद नेताजी देश की आजादी के लिए विभिन्न आंदोलनों में कूदे एवं देश के युवाओं को आजादी के संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित करते रहे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचारों से देश के स्वतंत्रता आंदोलन को भी नई दिशा मिली। वर्ष 1945 में नेताजी ताइवान में हवाई जहाज दुर्घटना में शहीद हो गए हालांकि अभी यह दुर्घटना प्रमाणिक नहीं मानी गई है।

राजनीतिक जीवन परिचय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी जी के द्वारा की गई थी। आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को चितरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी आगे चलकर चितरंजन दास नेता जी के राजनीतिक गुरु बन गए। इसके बाद वह बंगाल कांग्रेस स्वयंसेवकों की युवा शिक्षक और कमांडेंट बन गए। उन्होंने स्वराज अखबार की भी शुरुआत की थी।

1927 में सुभाष चंद्र बोस जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और जवाहरलाल नेहरू के साथ भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1938 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया।

सुभाष चंद्र बोस का संकल्प 1949 में आया जब उन्होंने पुनर्मिलन के लिए गांधीवादी प्रतिद्वंदी को हराया और गांधी के समर्थन की कमी के कारण इस्तीफा दे दिया।

आजादी में नेताजी की भूमिका

भारत की आजादी के लिए नेताजी की भूमिका की कोई तुलना नहीं है। भारत की आजादी के लिए नेताजी ने 1943 में आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया था। देश की आजादी के लिए नेताजी हिटलर से मिलने जर्मनी भी गए। देश की आजादी के लिए नेताजी ने करोड़ों युवाओं को भी प्रेरित किया।

Subhash Chandra Bose Jayanti 2023

नेता जी ने ही विश्व युद्ध में जर्मनी और जापान में कैद किए गए भारतीय सैनिकों को उनसे वापस मांगा और एक नई सेना खड़ी कर दी। महात्मा गांधी को भी राष्ट्रपिता की उपाधि नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं दी थी।

सुभाष चंद्र बोस जयंती 2023

भारत की आजादी के लिए अनेक योद्धाओं और महापुरुषों ने परोक्ष और अपरोक्ष रूप से अपना जीवन अर्पित किया है। इन योद्धाओं ने अपने और अपने परिवार के साथ साथ अपने स्वयं के स्वार्थ को त्याग कर अपने देश के लिए अपना बलिदान किया है। इनमें एक नाम सुभाष चंद्र बोस भी अग्रणी नेता के रूप में याद आता है।

भारत में ब्रिटिश भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम प्रयास में ही चौथा स्थान प्राप्त कर सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के आंदोलन में अपने सरकारी पद को छोड़कर संघर्षों का जीवन चुना। आज के समय में अगर कोई आईएएस या आईपीएस की परीक्षा पास कर लेता है तो वह सरकारी नौकरी लेकर आराम का जीवन व्यतीत करना चाहता है लेकिन नेताजी इतने बड़े पद को ठुकरा कर देश की आजादी के लिए क्रांति का मार्ग अपनाना बेहतर समझा।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन तो किया ही इसके साथ साथ जापान एवं जर्मनी से भारत की आजादी हेतु सहायता प्राप्त करने के लिए उनके यहां जाकर उनसे अपने कैद भारतीय सैनिकों को वापस मांगा और उन सैनिकों को लेकर आजाद हिंद फौज का गठन किया।

अपने देश के युवाओं को आजादी के लिए आंदोलन से जोड़ने के लिए उन्होंने एक प्रसिद्ध नारा दिया है जो कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साहस और पराक्रम को याद रखने के लिए भारत सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की।

पराक्रम दिवस कब मनाया जाता है?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी के दिन पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को याद करने एवं नेताजी को श्रद्धांजलि देने हेतु 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है।

इस बार पराक्रम दिवस 23 जनवरी सोमवार को मनाया जा रहा है। इस बार 2023 में 126 वां पराक्रम दिवस मनाया जा रहा है।

पराक्रम दिवस का महत्व

भारत के करोड़ों युवाओं को आंदोलन की प्रेरणा देने वाले नेता ज की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में युवाओं के सामने पेश किया गया है।

ब्रिटिश प्रशासनिक सेवा के आरामदायक जीवन को छोड़कर नेताजी देश सेवा के पथरीले मार्ग पर चले और अपना जीवन धन्य बनाया जिस कारण लोग आज भी नेता जी को याद रखते हैं।

नेताजी का पराक्रम

वामपंथी विचारों वाले नेताजी

ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जो 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा भी कांग्रेस में अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे।

फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्वों को साथ लाना था ताकि वह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ-साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सकें।

आजाद हिंद फौज को दोबारा खड़ा करना

सुभाष चंद्र बोस 1941 में जर्मनी चले गए और देश की आजादी के लिए काम करने लगे। 1943 में वह भारतीय स्वतंत्रता लीग का नेतृत्व करने के लिए सिंगापुर आए और भारतीय राष्ट्रीय सेना आजाद हिंद फौज का पुनर्निर्माण कर इसे भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रभावी बना दिया।

आजाद हिंद फौज में 45000 सैनिक थे जो युद्ध बंदियों के साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों में बसे हुए भारतीय थे।

1944 में और उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर हमले

1944 की शुरुआत में आजाद हिंद फौज की तीन इकाइयों ने भारत के उत्तर पर्वी हिस्सों पर अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए हमले किए। आजाद हिंद फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक शाहनवाज खान के अनुसार जिन सैनिकों ने भारत में प्रवेश किया था।

वह जमीन पर लेट गए और भावुक होकर सभी ने मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को अपने बदन पर लगा दिया। आजाद हिंद फौज की ओर से भारत को आजाद कराने का प्रयास विफल रहा लेकिन फिर भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हार नहीं मानी और जापान के आत्मसमर्पण करने के कुछ ही दिनों बाद नेताजी एक हवाई दुर्घटना में मारे गए।

नेताजी की मृत्यु पर विवाद

ऐसा माना जाता है कि ताइवान में हवाई दुर्घटना हुई थी जिसमें नेताजी की मृत्यु हो गई थी परंतु यह प्रमाणित नहीं है। अभी इसमें बहुत ज्यादा कयास लगाए जा रहे हैं कि नेताजी की उस हवाई दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। नेताजी हवाई दुर्घटना में बच गए थे और एक बाबा के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे थे।

FAQ:  

Q: पराक्रम दिवस किस महापुरुष की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है?

Ans: सुभाष चंद्र बोस ।

Q:  पराक्रम दिवस कब मनाया जाता है?

Ans: 23 जनवरी को ।

Q: सुभाष चंद्र बोस जयंती कब है?

Ans: 23 जनवरी ।

Q: “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा किसने दिया?

Ans: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ।

Q: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब और कहां हुआ?

Ans: 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा राज्य के कटक शहर में हुआ था।

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